"अब तो हद हो गई यार ! / पंकज त्रिवेदी" के अवतरणों में अंतर
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आज झलकने लगी है भले ही चांदी बालों में | आज झलकने लगी है भले ही चांदी बालों में |
02:27, 26 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
ऐ जी सुनती हो...?
आजकल हम दोनों
बहुत बिजी रहने लगे हैं
तुम हो कि नई ब्याही
बेटी की चिंता में आधी-अधूरी-सी
दे रही हो गिफ़्ट पलपल दामाद को
और खिला रही हो उसे गुजराती ढोकला...
बेटा हमारा घूमता है यहाँ-वहाँ
और मेरी दौड़ दोनों के पीछे
मगर आज भी वही प्यार हम दोनों में...
आज भी रिश्ता हमारा अटूट
अडिग और पक्का
जैसा था कभी
जब तुम थीं नई नवेली दुल्हन... !
आज झलकने लगी है भले ही चांदी बालों में
पैदा हुईं झुर्रिंयाँ थोड़ी-सी चेहरे पे
हाल ही में शुरू हुआ दर्द हमारे घुटनों में
मगर आज भी वही प्यार हम दोनों में...
बच्चों के साथ रहते, घूमते, चलते, फिरते
और गिरते
आँख मिचौलियाँ खेलते हम हलके से
वो तो डूबने लगे अब अपनी दुनिया में
मानों, कुछ ही दिनों की बात...
मगर आज भी वही प्यार हम दोनों में...
फिर क्या पूछ्ती हो तुम तिरछी आँखों से
मैं कहता हूँ-- बस, अब फुर्सत ही फुर्सत
चक्कर काटेगी हमारे बीच
और तुम कहोगी--
अब तो हद हो गई है यार !
मगर आज भी वही प्यार हम दोनों में...
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : स्वयं कवि