भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उलझनें तो हैं सभी के साथ / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:32, 26 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

उलझनें तो हैं सभी के साथ
क्यों न हम जी लें‍ ख़ुशी के साथ

कुछ तो है रागात्मक रिश्ता
खारे सागर का नदी के साथ

रूप का जादू भी शामिल है
आपकी जादूगरी के साथ

सूर्य के संग धूप भी होगी
चाँद होगा चाँदनी के साथ

आपके भी पर निकल आए
रहते-रहते उस परी के साथ

गंध आती है सियासत की
मुझको उसकी दोस्ती के साथ

कितनी यादें छोड़ जाता है
साँप अपनी केंचुली के साथ