भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भोर की अपनी जगह , अपनी है दुपहर की जगह / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:34, 26 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

भोर की अपनी जगह अपनी है दुपहर की जगह
दूसरा घर ले नहीं सकता मेरे घर की जगह

आदमी हूँ आदमी से ही मेरी तुलना करो
लोग रख देते हैं क्यों मुझको पयंबर की जगह

बोझ का पर्वत है बूढ़ा बाप बच्चों के लिए
झिड़कियाँ मिलती हैं उसको रोज़ आदर की जगह

आप कैसे थाह पा सकते हैं मेरी पीर की
मेरी आँखों में कहीं तो है समन्दर की जगह

आपने पत्नी को सारे सुख बराबर के दिए
किन्तु मिल सकती नहीं उसको बराबर की जगह

लोग जिसको नील-नभ कहते हैं, वो कुछ भी नहीं
शून्य केवल शून्य है, उस नील-अंबर की जगह