भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किताबों में तो सब कुछ ही लिखा है / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:09, 27 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
किताबों में तो सब कुछ ही लिखा है
किताबें कौन पढ़ना चाहता है
सुनिश्चित है वो मुँह के बल गिरेगा
बिना पंखों के उड़ने चला है
कली से फूल बनते ही अचानक
कली को मुस्कुराना आ गया है
मुझे दुर्भाग्य से लड़ना पड़ेगा
मेरे सम्मुख यही अब रास्ता है
उसे विज्ञान में कहते हैं घर्षण
जो हर चलते हुए को रोकता है
सुना है वो नशा करता नहीं है
ये सच है उसको सत्ता का नशा है
ये स्पर्धा का युग है, इस लिए ही
जहाँ देखो वहीं प्रतियोगिता है