भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
रचनाकारः [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=सांध्य काकली / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]];रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"}}{{KKCatKavita‎}}<poem>पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है,आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में,अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ हैदिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में ।
*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*=*लीला का संवरण-समय फूलों का जैसेफलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर,सिद्ध योगियों जैसे या साधारण मानव,ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर ।
पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है,<br>आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में,<br>अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है<br>दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में।<br>लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे<br>फलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर,<br>सिद्ध योगियों जैसे या साधारण मानव,<br>ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर<br>स्निग्ध हो चुका है निदाघ, वर्षा भी कर्षित<br>कल शारद कल्प कल्य की , हेम लोमों आच्छादित,<br>शिशिर-भिद्य, बौरा बसंत आमों आमोदित,<br>बीत चुका है दिक् चुम्बित दिक्चुम्बित चतुरंग, काव्य, गति-<br>यतिवाला, ध्वनि, अलंकार, रस, राग बन्ध के<br>वाद्य -छन्द के रणित गणित छुट चुके हाथ से,<br>--क्रीड़ाएँ व्रीड़ा में परिणत। मल्ल परिणत । मल्ल भल्ल की-<br>-मारें मूर्छित हुईं, निशाने चूक गये गए हैं<br> झूल चुकी है खाल ढाल की तरह तनी थी।<br>पुनः सवेरा, एक और फेरा हो है जी का।का ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,340
edits