"पत्रोत्कंठित जीवन का विष / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे | + | अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है |
− | फलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर, | + | दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में । |
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− | ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर | + | लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे |
− | स्निग्ध हो चुका है निदाघ, वर्षा भी कर्षित | + | फलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर, |
− | कल शारद | + | सिद्ध योगियों जैसे या साधारण मानव, |
− | शिशिर-भिद्य, बौरा बसंत आमों आमोदित, | + | ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर । |
− | बीत चुका है | + | |
− | यतिवाला, ध्वनि, अलंकार, रस, राग बन्ध के | + | स्निग्ध हो चुका है निदाघ, वर्षा भी कर्षित |
− | वाद्य छन्द के रणित गणित छुट चुके हाथ से | + | कल शारद कल्य की, हेम लोमों आच्छादित, |
− | क्रीड़ाएँ व्रीड़ा में | + | शिशिर-भिद्य, बौरा बसंत आमों आमोदित, |
− | मारें मूर्छित हुईं, निशाने चूक | + | बीत चुका है दिक्चुम्बित चतुरंग, काव्य, गति |
− | झूल चुकी है खाल ढाल की तरह तनी थी। | + | यतिवाला, ध्वनि, अलंकार, रस, राग बन्ध के |
− | पुनः सवेरा, एक और फेरा | + | वाद्य-छन्द के रणित गणित छुट चुके हाथ से-- |
+ | क्रीड़ाएँ व्रीड़ा में परिणत । मल्ल भल्ल की-- | ||
+ | मारें मूर्छित हुईं, निशाने चूक गए हैं । | ||
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+ | झूल चुकी है खाल ढाल की तरह तनी थी। | ||
+ | पुनः सवेरा, एक और फेरा है जी का । | ||
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23:24, 28 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है,
आज्ञा का प्रदीप जलता है हृदय-कुंज में,
अंधकार पथ एक रश्मि से सुझा हुआ है
दिङ् निर्णय ध्रुव से जैसे नक्षत्र-पुंज में ।
लीला का संवरण-समय फूलों का जैसे
फलों फले या झरे अफल, पातों के ऊपर,
सिद्ध योगियों जैसे या साधारण मानव,
ताक रहा है भीष्म शरों की कठिन सेज पर ।
स्निग्ध हो चुका है निदाघ, वर्षा भी कर्षित
कल शारद कल्य की, हेम लोमों आच्छादित,
शिशिर-भिद्य, बौरा बसंत आमों आमोदित,
बीत चुका है दिक्चुम्बित चतुरंग, काव्य, गति
यतिवाला, ध्वनि, अलंकार, रस, राग बन्ध के
वाद्य-छन्द के रणित गणित छुट चुके हाथ से--
क्रीड़ाएँ व्रीड़ा में परिणत । मल्ल भल्ल की--
मारें मूर्छित हुईं, निशाने चूक गए हैं ।
झूल चुकी है खाल ढाल की तरह तनी थी।
पुनः सवेरा, एक और फेरा है जी का ।