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"सज्जन कितना बदल गया है / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर

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09:19, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण

दहकन का अहसास कराता, चंदन कितना बदल गया है
मेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया है।

आँखों ही आँखों में, सूख गयी हरियाली अंतर्मन की;
कौन करे विश्वास कि मेरा, सावन कितना बदल गया है।

पाँवों के नीचे से खिसक खिसक जाता सा बात बात में;
मेरे तुलसी के बिरवे का, आँगन कितना बदल गया है।

भाग रहे हैं लोग मृत्यु के, पीछे पीछे बिना बुलाये;
जिजीविषा से अलग-थलग यह, जीवन कितना बदल गया है।

प्रोत्साहन की नयी दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;
दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है।




साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com के बस्तर के 'वरिष्ठतम साहित्यकार' की रचनाओं को अंतरजाल पर प्रस्तुत करने के प्रयास के अंतर्गत संग्रहित।