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14:25, 29 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
जिसके सिर पर धूप खड़ी है
दुनिया उसकी बहुत बड़ी है ।
ऊपर नीलाकाश परिन्दे,
नीचे धरती बहुत पड़ी है ।
यहाँ कहकहों की जमात में,
व्यथा कथा उखड़ी-उखड़ी है।
जाले यहाँ कलाकृतियाँ हैं,
प्रतिभा यहाँ सिर्फ़ मकड़ी है।
यहाँ सत्य के पक्षधरों की,
सच्चाई पर नज़र कड़ी है।
जिसने सोचा गहराई को,
उसके मस्तक कील गड़ी है ।
और कहाँ तक प्रगति करेगी,
बस्ती यहाँ कहाँ पिछड़ी है ?