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"सभ्यता / संतोष मायामोहन" के अवतरणों में अंतर
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किसी भविष्य के "थेह" | किसी भविष्य के "थेह" |
14:34, 29 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
सड़क के दोनों किनारों
खड़े हैं
दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान
मैं देखती हूँ इन्हें
और मापने लगती हूँ
किसी भविष्य के "थेह"
की ऊँचाई ।
खोदती हूँ उन्हें
और ढूँढ़ने लगती हूं किसी सभ्यता
के निशान
वह मिलती है मुझे
इन महलों की गहरी नींव में
क्षत-विक्षत
लहूलुहान ।
अनुवाद : मोहन आलोक