भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ मुक्तक / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> 01. जो तिमिर के …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | '''1.''' | |
− | जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त | + | जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढ़ते रहे |
− | वे बहादुर संकटों को जीत कर | + | वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे |
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण | कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण | ||
− | ओ बटोही! फूल उसके शीश पर | + | ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे । |
− | + | '''2.''' | |
शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं, | शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं, | ||
− | + | साँझ उनके व्योम पर आती नहीं है | |
आरती के दीप जलते जा रहे हैं | आरती के दीप जलते जा रहे हैं | ||
− | आँधियों की जीत हो पाती नहीं | + | आँधियों की जीत हो पाती नहीं है । |
− | + | '''3.''' | |
सूर्य चमका सांझ की सौगात दे कर बुझ गया | सूर्य चमका सांझ की सौगात दे कर बुझ गया | ||
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया | चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया | ||
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है | किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है | ||
− | रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ | + | रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया । |
− | + | ||
</poem> | </poem> |
21:27, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण
1.
जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढ़ते रहे
वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण
ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे ।
2.
शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं,
साँझ उनके व्योम पर आती नहीं है
आरती के दीप जलते जा रहे हैं
आँधियों की जीत हो पाती नहीं है ।
3.
सूर्य चमका सांझ की सौगात दे कर बुझ गया
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है
रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया ।