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"कुछ मुक्तक / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर

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जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढते रहे
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जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढ़ते रहे
वे बहादुर संकटों को जीत कर बढते रहे
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वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे
 
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण
 
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण
ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढते रहे।
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ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे ।
  
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शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं,  
 
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सांझ उनके व्योम पर आती नहीं है
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आरती के दीप जलते जा रहे हैं
 
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आँधियों की जीत हो पाती नहीं है।
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सूर्य चमका सांझ की सौगात दे कर बुझ गया  
 
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चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया
 
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किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है
 
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रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया।
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रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया ।
 
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21:27, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण

1.

जो तिमिर के भाल पर उजले नख़त पढ़ते रहे
वे बहादुर संकटों को जीत कर बढ़ते रहे
कंटकों का सामना करते रहे जिसके चरण
ओ बटोही! फूल उसके शीश पर चढ़ते रहे ।

2.

शौर्य के सूरज चमकते आ रहे हैं,
साँझ उनके व्योम पर आती नहीं है
आरती के दीप जलते जा रहे हैं
आँधियों की जीत हो पाती नहीं है ।

3.

सूर्य चमका सांझ की सौगात दे कर बुझ गया
चाँद चमका और काली रात दे कर बुझ गया
किंतु माटी के दिये की देन ही कुछ और है
रात हमने दी जिसे वो प्रात दे कर बुझ गया ।