भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुश्मन को भी गले लगा कर ख़ुश हो लेता हूँ / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनिल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> दुश्मन को भी गले ल…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=कुमार अनिल | |रचनाकार=कुमार अनिल | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
हर आँगन में दीप जला कर ख़ुश हो लेता हूँ | हर आँगन में दीप जला कर ख़ुश हो लेता हूँ | ||
− | + | रास नहीं आता जब मुझको साथ सयानो का | |
बच्चों की दुनिया में आकर ख़ुश हो लेता हूँ | बच्चों की दुनिया में आकर ख़ुश हो लेता हूँ | ||
21:38, 30 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
दुश्मन को भी गले लगा कर ख़ुश हो लेता हूँ
दर्द पराया दिल में बसा कर ख़ुश हो लेता हूँ
इस परदेश में जब बच्चों की याद सताती है
चंद खिलौने घर में लाकर ख़ुश हो लेता हूँ
जब सूरज के नखरे कुछ ज़्यादा बढ़ जाते हैं
हर आँगन में दीप जला कर ख़ुश हो लेता हूँ
रास नहीं आता जब मुझको साथ सयानो का
बच्चों की दुनिया में आकर ख़ुश हो लेता हूँ
आग बुझाने की कोशिश में औरों के घर की
अक्सर अपने हाथ जलाकर ख़ुश हो लेता हूँ
पेट काटकर अपना, अपने बीवी बच्चों का
पैसे मैं दो चार बचाकर ख़ुश हो लेता हूँ
जब-जब याद किसी की आकर बहुत रुलाती है
कोई ग़ज़ल अनिल की गाकर ख़ुश हो लेता हूँ