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"मटकी / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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09:48, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
माटी रै सबदां नै
पगां सूं खूंधै
गांठां तोड़ै
अर पसीनो रळा‘र
भासा बणावै।
हाथ री कलम सूं
चाक रै कागद माथै
सिरजै मटकी
न्हेई रो ताप
रचना पीड़ बणै
भावना रा भतूळियां सूं
रचीजै
रंग-रंगीला मांडणा।
कुंभार री मैणत सूं
रचीजी मटकी
कविता सूं
कम कठै है ?