भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मटकी / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
|संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां / मदन गोपाल लढ़ा  
+
|संग्रह=म्हारी पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
 
}}
 
}}
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
 
माटी रै सबदां नै
 
माटी रै सबदां नै
 
पगां सूं खूंधै
 
पगां सूं खूंधै
पंक्ति 26: पंक्ति 25:
 
कविता सूं
 
कविता सूं
 
कम कठै है ?
 
कम कठै है ?
 
 
 
</Poem>
 
</Poem>

09:48, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण

माटी रै सबदां नै
पगां सूं खूंधै
गांठां तोड़ै
अर पसीनो रळा‘र
भासा बणावै।
हाथ री कलम सूं
चाक रै कागद माथै
सिरजै मटकी
न्हेई रो ताप
रचना पीड़ बणै
भावना रा भतूळियां सूं
रचीजै
रंग-रंगीला मांडणा।

कुंभार री मैणत सूं
रचीजी मटकी
कविता सूं
कम कठै है ?