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"आव सोधां बै सबद / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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वेद कैवे | वेद कैवे | ||
इण सृष्टि में | इण सृष्टि में |
16:59, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
वेद कैवे
इण सृष्टि में
अजैं थिर है
बै सबद
जका सूं रचीज्या मंतर
जुगां री खेचळ रै पाण।
ओ म्हारां सिरजक !
आव सोधां
बां सबदां नै
पिछाणां बां‘रै तेज नै
उतारां
बां मंतरां री आतमावां नै
आपकी कविता में
अर साधां सगपण बां‘री गूंज सूं।
पछै देखजे
आपणी कविता
किणी मंतर सूं
कम नीं हुवैली।