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21:44, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
प्यार दिया करता है पीड़ा, पीड़ा प्यार दिया करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
इस जग के हरियल आंगन के, पत्ते पीले हो झड़ जावें,
वासन्ती की बहर भूल कर, कभी लौट कर जब ना आवें,
खुशियां तो उलझन ही देती, उलझन पार किया करती है,
जब कोई साथ नहीं देता, तब कविता साथ दिया करती है ।
मरू भूमि के इस मेले में, रेतों के बवाल घने रे,
उखड़े उखड़े इन टीबों पर, एक धधकती ज्वाल तने रे,
आशा अगन लगाती किंतु, सत्या धार दिया करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
झाड़ झूड़ कुछ नहीं अकेला, त्रण तक न देता दिखलाई,
इक निदाध का दर्शन ऐसा, जीवन जैसे सुध बौराई,
जल विहीन पोखर का तलपट, बोलो ! कौन सीया करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है
जिन्होंने विषपान किया है, धन्य नहीं क्या उनका जीना ?
जिनकी निष्ठा तुल न सकी हो, उनका पावस तुल्य पसीना,
रूठ जाय जब सभी सितारे, किसकी चमक जीया करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
शोर बहुत होता है उनका, जो कि तल से दूर बसे हैं,
उनकी आभा का क्या कहना, जो मानस को कसे-कसे हैं,
काल दिया करता है चिन्तन, चिंता सार दिया करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।
उन्मादों से भरी पिपासा, ठौर ठौर छल जाया करती,
किन्तु कौन लगन कि जिससे, नियति तक फल जाया करती,
बर्राता हो मौसम, तब भी, मौनी साध रहा करती है,
जब कोई साथ नहीं होता, तब कविता साथ दिया करती है ।