"ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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तुम किस जादू के बिरवे | तुम किस जादू के बिरवे | ||
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से वह लड़की काटी, | से वह लड़की काटी, | ||
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छूकर जिको गुण-स्वभाव तज | छूकर जिको गुण-स्वभाव तज | ||
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काल, नियम, परिपाटी, | काल, नियम, परिपाटी, | ||
− | + | बोली प्रकृति, जगे मृत-मूर्च्छित | |
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सूत्रधार, हे चिर उदार, | सूत्रधार, हे चिर उदार, | ||
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दे सबके मुख में भाषा, | दे सबके मुख में भाषा, | ||
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तुमने कहा, कहो जब अपने | तुमने कहा, कहो जब अपने | ||
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सुख, दुख,संशय, आशा; | सुख, दुख,संशय, आशा; | ||
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+ | सब लगे तुम्हारा ही करने अभिनंदन । | ||
+ | ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन ! | ||
बहु वरदामयी वाणी के | बहु वरदामयी वाणी के | ||
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कृपस-पात्र बहुतेरे, | कृपस-पात्र बहुतेरे, | ||
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देख तुम्हें ही, पर, वह बोली, | देख तुम्हें ही, पर, वह बोली, | ||
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'कालीदास तुम मेरे'; | 'कालीदास तुम मेरे'; | ||
− | + | दिया किसी को ध्यान, धैर्य, | |
− | + | करुणा, ममता, आश्वासन; | |
− | + | किया तुम्ही को उसने अपना | |
− | + | यौवन पूर्ण समर्पण; | |
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− | ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन! | + | तुम कवियों की ईर्ष्या के विषय चिरंतन । |
+ | ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन ! | ||
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09:31, 3 दिसम्बर 2010 का अवतरण
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
तुम विक्रम नवरत्नों में थे,
यह इतिहास पुराना,
पर अपने सच्चे राजा को
अब जग ने पहचाना,
तुम थे वह आदित्य, नवग्रह
जिसके देते थे फेरे,
तुमसे लज्जित शत विक्रम के सिंहासन ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
तुम किस जादू के बिरवे
से वह लड़की काटी,
छूकर जिको गुण-स्वभाव तज
काल, नियम, परिपाटी,
बोली प्रकृति, जगे मृत-मूर्च्छित
रघु-पुरु वंश पुरातन,
गंधर्व, अप्सरा, यक्ष, यक्षिणी, सुरगण ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
सूत्रधार, हे चिर उदार,
दे सबके मुख में भाषा,
तुमने कहा, कहो जब अपने
सुख, दुख,संशय, आशा;
पर अवनी से, अंतरिक्ष से,
अम्बर, अमरपुरी से
सब लगे तुम्हारा ही करने अभिनंदन ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !
बहु वरदामयी वाणी के
कृपस-पात्र बहुतेरे,
देख तुम्हें ही, पर, वह बोली,
'कालीदास तुम मेरे';
दिया किसी को ध्यान, धैर्य,
करुणा, ममता, आश्वासन;
किया तुम्ही को उसने अपना
यौवन पूर्ण समर्पण;
तुम कवियों की ईर्ष्या के विषय चिरंतन ।
ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन !