भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे / संकल्प शर्मा का नाम बदलकर किसकी तसल्ली पर अब रोकू
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
किसकी तसल्ली पर मैं अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरेमिरे, देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब मेरे। <ref>दोस्त</ref> मिरे
जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में, गया वो बालकनी के फ़ूल भी सूखे -सूखे हैं और महकना उतरना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मेरे। गया है खिड़की में महताब<ref>चाँद</ref> मिरे
उम्मीद आस के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें, या तो दीद <ref>दीदार,देखना</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मेरे। मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
ज़रा संभालना रुला न डालें तुझको कहीं जवाब मेरे। (अहबाब : दोस्त)(दीद : देखने तुझ को) ग़मगीं<ref>ग़मगीन,उदास </ref> भी कर सकते हैं वो सब असबाब<ref>कारण का बहुवचन </ref></poem>मिरे {{KKMeaning}}