भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे / संकल्प शर्मा का नाम बदलकर किसकी तसल्ली पर अब रोकू
{{KKCatGhazal}}
<poem>
किसकी तसल्ली पर मैं अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरेमिरे, देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब मेरे। <ref>दोस्त</ref> मिरे
जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में, गया वो बालकनी के फ़ूल भी सूखे -सूखे हैं और महकना उतरना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मेरे। गया है खिड़की में महताब<ref>चाँद</ref> मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,