भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सौ चांद भी चमकेंगे / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
  
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी <br>
+
सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी <br>
 
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी <br><br>
 
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी <br><br>
  

18:10, 15 अप्रैल 2008 का अवतरण

सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी

उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात बनेगी

ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें
ऐ इश्क़! हमारी न तेरे साथ बनेगी

हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी

ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी