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"होटों को सच्चाई दे / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>होठों को सच्चाई दे बस इतनी अच्छाई दे मेरा ही आसेब मुझे घर में रो…)
 
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17:54, 6 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

होठों को सच्चाई दे
बस इतनी अच्छाई दे

मेरा ही आसेब मुझे
घर में रोज़ दिखाई दे

ऐसी क्यों है ये दुनिया
यारब आज सफ़ाई दे

रिश्ते अगर बनाए हैं
रिश्तों को गहराई दे

ख़ुद से भी कुछ बात करूँ
इतनी तो तन्हाई दे

अगर कहीं है ईश्वर तू
मुझको कभी दिखाई दे