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/* युध्दों का सजीव चित्र */
{{KKRachnakaarParichay|रचनाकार=भूषण }}'''भूषण''' (1613-1705) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों बिहारी, केशव और भूषण में से एक हैं। रीति काल में जब सब कवि श्रृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर के भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया।
==जीवन परिचय==
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि।
सरजा सिवाजी जंग जीवन जीतन चलत है।।
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,
तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत लIगत जिम,
====भाषा====
* रस - प्रधानता वीर, भयानक, वीभत्स, रौद्र और श्रृंगार भी है।
* अलंकार - प्रायः सभी अलंकार हैं।
==एक और टिप्पणी==
भूषण का जन्म (1613-1715 ई.) कानपुर जिले के तिकवापुर ग्राम में हुआ था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। कहते हैं भूषण निकम्मे थे। एक बार नमक मांगने पर भाभी ने ताना दिया कि नमक कमाकर लाए हो? उसी समय इन्होंने घर छोड दिया और कहा 'कमाकर लाएंगे तभी खाएंगे। प्रसिध्द है कि कालांतर में इन्होंने एक लाख रुपए का नमक भाभी को भिजवाया। हिन्दू जाति का गौरव बढे और उन्नति हो यह इनकी अभिलाषा थी। इस कारण वीर शिवाजी को इन्होंने अपना आदर्श बनाया तथा उनकी प्रशंसा में कविता लिखी। चित्रकूट नरेश के पुत्र रुद्र सोलंकी ने भी इनकी कविता सराही और इन्हें 'भूषण की उपाधि दी। इनके प्रसिध्द ग्रंथ हैं- 'शिवराज भूषण, 'शिवा बावनी तथा 'छत्रसाल-दशक, जिनमें वीर, रौद्र, भयानक और वीभत्स रसों का प्रभावशाली चित्रण है। 'भूषण रीतिकाल के एकमात्र कवि हैं, जिन्होंने श्रृंगारिकता से हटकर वीरता और देशप्रेम के वर्णन से कविता को गौरव प्रदान किया।