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"धूप कोठरी के आईने में खड़ी / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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धूप कोठरी के आईने में खड़ी<br> | धूप कोठरी के आईने में खड़ी<br> |
18:16, 3 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम सा पीला
बहुत कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास मा का मुख
याद आता है।