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"राह से मिली राह / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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राह से
मिली राह
बना चौराहा
जहाँ से हुआ
आवागमन-
चाहा-अनचाहा;
बल हो तो
कोई तोड़े
चौराहा,
और फिर सैर करे
नए देश की
नए तारों की
मौन धरे
सिर पर।
रचनाकाल: ०७-०३-१९७२