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"दीपक जलता रहा रातभर / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
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तन का दिया, प्राण की बाती, | तन का दिया, प्राण की बाती, | ||
− | दीपक जलता रहा | + | दीपक जलता रहा रात-भर । |
− | दु:ख की घनी बनी | + | |
+ | दु:ख की घनी बनी अँधियारी, | ||
सुख के टिमटिम दूर सितारे, | सुख के टिमटिम दूर सितारे, | ||
उठती रही पीर की बदली, | उठती रही पीर की बदली, | ||
− | मन के पंछी | + | मन के पंछी उड़-उड़ हारे । |
− | बची रही प्रिय की | + | |
+ | बची रही प्रिय की आँखों से, | ||
मेरी कुटिया एक किनारे, | मेरी कुटिया एक किनारे, | ||
मिलता रहा स्नेह रस थोडा, | मिलता रहा स्नेह रस थोडा, | ||
− | दीपक जलता रहा | + | दीपक जलता रहा रात-भर । |
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दुनिया देखी भी अनदेखी, | दुनिया देखी भी अनदेखी, | ||
नगर न जाना, डगर न जानी; | नगर न जाना, डगर न जानी; | ||
रंग देखा, रूप न देखा, | रंग देखा, रूप न देखा, | ||
केवल बोली ही पहचानी, | केवल बोली ही पहचानी, | ||
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कोई भी तो साथ नहीं था, | कोई भी तो साथ नहीं था, | ||
साथी था ऑंखों का पानी, | साथी था ऑंखों का पानी, | ||
सूनी डगर सितारे टिमटिम, | सूनी डगर सितारे टिमटिम, | ||
− | पंथी चलता रहा | + | पंथी चलता रहा रात-भर । |
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अगणित तारों के प्रकाश में, | अगणित तारों के प्रकाश में, | ||
मैं अपने पथ पर चलता था, | मैं अपने पथ पर चलता था, | ||
मैंने देखा, गगन-गली में, | मैंने देखा, गगन-गली में, | ||
− | चाँद सितारों को छलता | + | चाँद-सितारों को छलता था । |
− | + | ||
+ | आँधी में, तूफ़ानों में भी, | ||
प्राण-दीप मेरा जलता था, | प्राण-दीप मेरा जलता था, | ||
कोई छली खेल में मेरी, | कोई छली खेल में मेरी, | ||
− | दिशा बदलता रहा | + | दिशा बदलता रहा रात-भर । |
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18:39, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण
तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।
बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर ।
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर ।