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<poem>
वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न<ref>कलाकारों</ref> के बाद ।
दादे-सुख़न<ref>कविता की प्रशंसा</ref> मिली मुझे तर्के-वतनसुखन<ref>वतन लिखना छोड़ना</ref> के बाद ।
दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
गुरबत<ref>परदेश</ref> की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन<ref>वतन की क़द्र</ref> हुई हमें तर्के-वतन <ref>वतन छोड़ना</ref> के बाद
इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
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