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उजड़ा संगीत / भरत ओला

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बणी-ठणी
बास गुवाड़ की लुगाईयां
जच्चा <ref>प्रसूता स्त्री</ref> संग आती
सुगणी बुआ
पराते चके सिर पर
‘पीळो’ <ref>मांगलिक लोकगीत</ref> गाती
टींगर धमकाती
घूघरी बांटती
हुआ करता था जाल
इसी पर
खेला करते थे कुर्रांडंडा<ref>प्रसूता स्त्री</ref>
यहीं हुआ करता था ताल
गुल्लीडंडा, मारदड़ी<ref>ग्रामीण खेल</ref>, घुथागिंडी<ref>क्रिकेट जैसा एक ग्रामीण खेल</ref>लगा करते थे टोरे<ref>प्रसूता स्त्री</ref>पिदाया करते थे टींगरों <ref>खेल में विपक्षी खिलाड़ी को अधिक दौड़ाना</ref> को
यहीं, यहीं
बजाया करता था अलगोजे
हांडीबगत<ref>दोपहर बाद का समय</ref>
बजता था ऊखल-मूसल का संगीत
टिक जाती थी खिचड़ी
हारे <ref>बड़ा चुल्हा</ref> बीच
हाली <ref>कृषक</ref> आतापाटड़े <ref>लकड़ी की पट्टी</ref> पर बैठ नहाता
आंगण बीच पसारा मार
सबड़कता चारों ओर
</Poem>
 
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