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{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदयाल
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem
कवि ने देखा
 
भीड़ वाली सड़क पर
 
बीचोंबीच गिरा पड़ा
 
एक अभावग्रस्त बीमार आदमी
 और उससे नजरें नज़रें चुराते कन्नी काटते गुजर गुज़र जाते लोग 
और कवि ने लिखी कविता!
 
कवि ने देखा
 
वर्दीवालों से सरेआम पिटता
 
और अपने निर्दोष होने की
 सफाई सफ़ाई देने की कोशिश करता एक शख्सशख़्स
और कवि ने लिखी कविता!
 
कवि ने देखे
 
झगड़े-झंझट
 
दंगे-फसाद
 
लूटमार
 अंधेरगर्दी अँधेरगर्दी और अनाचार... और लिख डाली कितनी ही कविताएँ! 
धन्य है कवि की कविताई
 
जो दिनोंदिन निखरती चली गई
 
धन्य है कवि का यश
 
जो चहुँओर फैलता चला गया
 
कवि ने
 कवि होने का फर्ज फ़र्ज़ निभाया बाकी बाक़ी को 
मनुष्य होने का धर्म निभाना था!
</poem>
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