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भाँवरे यों तो हज़ारों के साथ भरती रही
ज़िन्दगी अब भी कुँवारी कुँआरी है, इसे कुछ न कहो
उठ न बैठें, अभी रोते हुए सोये हैं गुलाब
रात किस तरह गुज़ारी है, इसे कुछ न कहो
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