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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=नयी ग़ज़लें / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category: ग़ज़ल]]
<poem>
उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
ली नहीं उसने ख़बर भी कभी दीवाने की
 
शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक
मेरी आदत है बुरी, पीके बहक जाने की
 
दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख
क्या से क्या हो गए गर्दिश से हम ज़माने की
 
देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार
याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की
 
जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को,गुलाब!
फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की
<poem>
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