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चौपदियाँ / मुनव्वर राना

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1
 
कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
 
हमें बुलाती है दुनिया हमीं नहीं जाते ।
 
मुहाजरीन से अच्छे तो ये परिन्दे हैं
 
शिकार होते हैं लेकिन कहीं नहीं जाते ।।
 
2
 उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है 'मुनव्वर ' फिर भी 
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
 
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
 
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।
 
3
 
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
 
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
 
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
 
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।
 
4
 
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
 
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
 दिखाते हैं पड़ौसी पड़ोसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो 
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।
</poem>
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