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झारत रज लागे मेरी अँखियनि रोग-दोष-जंजाल ॥<br><br>
भावार्थ :-- यशोदाजीयशोदा जी! तुम्हारा गोपाल चिरजीवी हो । व्रजरानी ! तुम्हारा यह मनोहर बालक बलराम के साथ शीघ्र बड़ा हो और दीर्घ बुढ़ापे तक रहे । पुण्य कर्मों के फल से यह शिशु इस प्रकार उत्पन्न हुआ है मानो समुद्र की सीप में ( मोती के बदले अकस्मात्) लाल उत्पन्न हो जाय । समस्त गोकुल का यह प्राण है, जीवन-धन है और शत्रुओं के हृदय का कण्टक (उन्हें पीड़ित करने वाला) है । सूरदास जी कहते हैं--इसका घुटनों चलना देखकर नेत्र कितना असीम आनन्द प्राप्त करते हैं । गोपि का यह आशीर्वाद देकर मोहन के शरीर में लगी) धूलि झाड़ती है । (और कहती हैं) `इस लालके लाल के सब रोग, दोष एवं संकट मेरी इन आँखों को लग जायँ ।'