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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }}[[Category:हाइकु]]<poem>11व्याकुल गाँवव्याकुल होरी के हैंघायल पाँव ।12कर्ज़ का भारउजड़े हुए खेतसेठ की मार ।13बेटी मुस्काईबहू बन पहुँचीलाश ही पाई । 14यह जनतामेले में गुमशुदा अबोध शिशु15नई सभ्यताआंगन में उगातेहैं नागफनी16दाएँ न बाएँखड़े हैं अजगरकिधर जाएँ ।17लूट रहे हैंसब पहरेदार इस देश को18मौत है आईजीना सिखलाने को देंगे बधाई ।19मैं नहीं हाराहै साथ न सूरजचाँद न तारा ।20साँझ की बेलापंछी ॠचा सुनातेमैं हूँ अकेला ।-0-</poem>