भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
होंट गोया हैं सूखे पत्तों से ।
ख़ामुशी चीखतेहै चीखती है आँखों से ।
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
Anonymous user