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होली बृज में / शिवदीन राम जोशी

951 bytes added, 17:06, 22 अक्टूबर 2012
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बृजबाला और गुवाला नन्दलाल के लगे हैं संग,
गड्वन में रंग घोल गेरत वह गोरी रे |
मारत पिचकारी तान-तान के कुंवर कान्ह,
मची धूम धाम नची अहीरों की छोरी रे |
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होरी का आनंद नन्द, नन्दलाल द्वार-द्वार,
रंग की पिचकारी व गुलाल लाल-लाल है |
रसिया के रसिक कृष्ण, गाय़़ रहे बंसी में,
सुन-सुन के दौड़-दौड़ आय गये गुवाल है |
गोपिन का झमेला, राधे पारत प्रेम हेला,
डारत रंग-रंग, गले प्रेम पुष्प माल है |
कहता शिवदीन लाल, राधे कृष्ण गुवाल बाल,
कर में गुलाल लाल, नांचत गोपाल है |
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कृष्ण श्याम श्यामा संग, देखो सखी होली रंग,
गुवाल बाल चंग बजा नांचत नांच गोरी रे |
मारत पिचकारी अरे भर-भर के रंग लाल,
लाल ही गुलाल लाल, लाल युगल जोरी रे |
होरी के दीवाना को, पकर-पकर कान्हा को,
नांच यूँ नाचावें, नांचे अहीरों की छोरी रे |
कहता शिवदीन राम आनन्द अपार आज,
आज वह तिंवार* सखी, सजो साज होरी रे |
*त्यौहार
<poem>
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