भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
इश्क़ की मार बड़ी दर्दीली, इश्क़ में जी न फँसाना जीइक ज़माना था कि जब था कच्चे धागों का भरमसब कुछ करना इश्क़ न करना, इश्क़ से जान बचाना जीकौन अब समझेगा कदरें रेशमी ज़ंजीर की
वक़्त न देखेत्याग, उम्र न देखेचाहत, जब चाहे मजबूर करेमौत और इश्क़ के आगे लोगोप्यार, कोई चले न बहाना जीनफ़रत, कह रहे हैं आज भीहम सभी हैं सूरतें बदली हुई ज़ंजीर की
इश्क़ की ठोकर, मौत की हिचकी, दोनों का है एक असरएक करे घर घर रुसवाई, एक करे अफ़साना जी इश्क़ की नेमत फिर भी यारो, हर नेमत पर भारी हैइश्क़ की टीसें देन ख़ुदा की, इश्क़ किस को अपना दुःख सुनाएँ किस से क्या घबराना जीअब माँगें मदद इश्क़ की नज़रों में सब यकसां, काबा क्या बुतख़ाना क्याइश्क़ में दुनिया उक्बां क्या बात करता है, क्या अपना बेगाना जी राह कठिन है पी के नगर की, आग पे चल कर जाना हैइश्क़ है सीढ़ी पी के मिलन की, जो चाहे तो निभाना जी 'तर्ज़' बहुत दिन झेल चुके तुम, दुनिया वो भी इक नई ज़ंजीर की ज़ंजीरों कोतोड़ के पिंजरा अब तो तुम्हें है देस पिया के जाना जी
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,225
edits