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पिघला मोम कुर-कुरा रहा था
... सो जा रे , सो जा, सो जा तू...
जिसने ख़ुद को पालने में यूँ नहीं झुलाया
जिसने ख़ुद को सहलाने और मसलने दिया
और
वह गीत ख़रानख़राब-सा
कहवाघरों की शान बना कब ?
क्या शासन था तब ज़ार निकलाई का ?
या बल्शेविकों बोल्शेविकों का, हातिमताई का ?
लेकिन पता नहीं क्यों होता है ऐसा
चाहे कोई भी समय हो
बहकी-बहकी चाल थी उसकी
और गोद में नन्हीं बच्ची
नंगधड़ंग नंग-धड़ंग थी उम्र की कच्ची
उखड़ी-उखड़ी साँसें उसकी
जैसे पड़ी हुई थी मार के मुस्की
इन क्रान्तियों का
मतलब क्या है ?
उनके रक्तिम- चिह्नों से भी
भला क्या हुआ है ?
सिर्फ़ रक्त बहे और आँसू बहे
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