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'''एकादश सर्ग: सगजग''' 
में जाग्रति पैदा कर दूँ¸
वह मन्त्र नहीं¸ वह तन्त्र नहीं।
कैसे वांछित कविता कर दूं¸ दूँ¸
मेरी यह कलम स्वतन्त्र नहीं॥1॥
अपने उर की इच्छा भर दूं¸ दूँ¸
ऐसा है कोई यन्त्र नहीं।
हलचल–सी मच जाये पर
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