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दीवारें / कुंवर नारायण

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|रचनाकार=कुंवर नारायण
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अब मैं एक छोटे-से घर
 और बहुत बड़ी दुनिया में रहता हूं  हूँ
कभी मैं एक बहुत बड़े घर
 
और छोटी-सी दुनिया में रहता था
 
कम दीवारों से
 
बड़ा फ़र्क पड़ता है
 
दीवारें न हों
 तो दुनिया से भी बड़ा हो जाता है घर ।घर।</poem>
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