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अक्स / ज्योत्स्ना शर्मा

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<Poem>
'''1-अक्स!'''
अक्स !
यूँ छुप तो जाते हैं
दिल के छाले
जतन से ...
छुपाने से
कैसे रोक पाऊँ मैं
अक्स..
रूह के ज़ख़्मों के
लफ़्ज़ों में उभर आने से !!
 
'''2-उम्मीद!'''
 
कतरे पंख
और ..लग गए खुद ही
मर्सिया गाने में
ठहरो !
ज़िन्दा हूँ अभी
भरूँगी उड़ान ....
कुछ वक़्त तो लगेगा
नए पंख आने में !!
 
'''3- तेरी याद!'''
 
एक बदली है
दिल के सहरा को
इस तरह ...
पल-पल परसती है
जिस तरह ...
भरके माँग तारों से,
रात की दुलहिन
रात भर तरसती है !!!
 
'''4-तितली'''
 
कैसे मन को
सुकूँ ..
कैसे तन को
आराम !
नर्म ,नाज़ुक
मखमल बदन
और ...
फूलों में,शूलों में
विचरने का काम ...
मेरे खुदा !
तू ही बता
क्या होना अंजाम ?
 
'''5-फाँस
'''
बड़ी गहरी ..
चुभी थी कोई फाँस ..
करकती रही !
और ज़िंदगी ..
अपने वजूद का अहसास लिये
धीरे-धीरे….
सरकती रही !
 
'''6-बेचैन रात'''
 
देखे ….
हवाओं के सितम
और जागती रही
बेचैन रात....
ख़्वाहिश में ,
चैन से सोने की
तेज़ी से ....
भागती रही ।
 
''7-मिठास''
 
पड़ा है पर्स
चेन ,बिखरे वस्त्र
और कोई भी
आसपास नहीं
जाने क्यों ...
इस खेत के गन्ने में
ज़रा भी
मिठास नहीं !
</poem>