भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कठै गयो पाणी! / मोनिका गौड़

846 bytes added, 12:54, 8 अप्रैल 2018
कांई बताऊं
कठै गयो पाणी!
ना कीं आणी, ना कीं जाणी
उतरग्यो पाणी
गमग्यो पाणी
पाणी री कदर कुण जाणी
धोळा गाभा री कड़प में
खपग्यो पाणी
स्वीमिंगपूल रै मांय
झीणै कपड़ा
लाजां मरगयो पाणी
ना कीं आणी, ना कीं जाणी
कांई बताऊं
कठै गयो पाणी!
 
मिनख मरया जद धरम रै नांव
दामिनी सागै जड़ होयग्यो पाणी
ना कीं आणी, ना कीं जाणी
कांई बताऊं
कठै गयो पाणी!
रैयगी कहाणी
उतरग्यो पाणी!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits