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Kavita Kosh से
अब तो आती हँसी हर इबादत पर है
इक दुआ का सबब है बनी ज़िंदगी।
तेरा मिलना-बिछड़ना बड़ा खेल है
डूब कर कीचड़ों में गले तक स्वयं
राह गंगा की हमको बताते रहे।
तुमको चाहा मगर तुमको पाया नहीं