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घर / तुलसी रमण

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इस दुनिया मेंखा रहा रोटी मेरे हिस्से की वह एक औरत गा रहा पकड़ाती रोटियों जाड़े की पोटली लम्बी रातों सूरज की पहली किरण के साथ बाबा से सुना गीत विदा ही लेता हूं कर रहा शौच दिन-भर के लिए बिवाइयां गिन-गिन दिन की सुरंग पत्थरों से गुजरखेलता शाम के अंधेरे में मिट्टी पर खींचता रेखाचित्रअब वह देहरी पर खड़ी करती है इंतजार आटे की पोटली और अपने हिस्से के इस आदमी का जाने लगा स्कूल भूख लगी देख आता है, माँ !पेट बजाते पुकारते फूड इंस्पैक्टर के पाँच मासूम स्वर बच्चे की पैंटतब्दील होते पाँच रोटियों और उसके टिफिन में जीवन के अंधेरे में ऑमलेट साधे गए वह खाता नहीं है रोटी इन पांच स्वरों में अब गाता नहीं गीत शामिल होता माँ का सिसकता स्वर दिन की सीढ़ियों खेलता नहीं पत्थरों से लुढ़कता धीरे-धीरे चीखता कराहता मेरा सातवां स्वर- क्या यही है घर ?
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