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{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम प्रकाश ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
 
<Poem>
जिन्होंने स्वतंत्र स्वतन्त्र कराया
यह देश
उनको नमन
जिन्होंने दहकी जवानी
लुटा दी राहों में
जिन्होंने सपने संवारे सँवारे
सिसकती आहों में
जिन्होंने रोता हंसाया हँसाया
यह देश
उनको नमन
जिनमें सिंधु से गहरा था
देश का जज़्बा
जिनमें स्वर्ग से ऊंचा ऊँचा था
राष्ट्र का बल्वा
जिन्होंने सिर पे बिठाया
यह देश उनको नमन
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
जिनका एक ही बस
इंकलाब इन्कलाब नारा था
जिनको वंदे मातरम्
वतन-सा प्यारा था
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
 
जिन्होंने मृत्यु से पूछा
तू अपना मोल बता
कि देश पहले है
और शेष सारे नाते हैं
तुम्हारे सपनों को अपिर्त अर्पित
हमारे सारे करम
जिन्होंने दिन यह दिखाया
यह पेश उनको नमन
</poem>
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