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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>ख़लिश-ए-हिज्र-ए-दायमी न गई|तेरे रुख़ से ये बेरुख़ी न गई|
पूछते हैं के कि क्या हुआ दिल को,हुस्न वालों की सादगी न गई|
सर से सौदा गया मुहब्बत का,दिल से पर इस की बेकली न गई|
और सब की हिकायतें कह दीं,बात अपनी कभी कही न गई|
हम भी घर से 'मुनिर' तब निकले,बात अपनों की जब सही न गई|
</poem>
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