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[[Category:ग़ज़ल]]
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बीच में पर्दा दुई का था जो हायल उठ गया
ऐसा कुछ देखा के दुनिया से मेरा दिल उठ गया
बीच में पर्दा दुई का था शमा ने रो-रो के काटी रात सूली पर तमाम शब को जो हायल उठ गया <br>ऐसा कुछ देखा के दुनिया महफ़िल से मेरा दिल तेरी ऐ ज़ेब-ए-महफ़िल उठ गया <br><br>
शमा ने रोमेरी आँखों में समाया उस का ऐसा नूर-रो के काटी रात सूली पर तमाम <br>ए-हक़ शब को जो महफ़िल से तेरी शौक़-ए-नज़्ज़ारा ज़ेबबद्र-ए-महफ़िल कामिल उठ गया <br><br>
मेरी आँखों में समाया उस का ऐसा नूर-ए-हक़ <br>शौक़-ए-नज़्ज़ारा ऐ बद्र-ए-कामिल उठ गया <br><br> ऐ ज़फ़र क्या पूछता है बेगुनाह-ओ-बर-गुनह <br>
उठ गया अब जिधर को वास्ते क़ातिल उठ गया
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