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आप की हँसी / रघुवीर सहाय

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रघुवीर सहाय}}<poem>निर्धन जनता का शोषण है<br />कह कर आप हँसे<br />लोकतंत्र का अंतिम क्षण है<br />कह कर आप हँसे<br />सबके सब हैं भ्रष्टाचारी<br />कह कर आप हँसे<br />चारो चारों ओर बड़ी लाचारी<br />कह कर आप हँसे<br />कितने आप सुरक्षित होंगे<br />मैं सोचने लगा<br />सहसा मुझे अकेला पा कर<br />फिर से आप हँसे<br /poem>
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