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एक मन: स्थिति / स्नेहमयी चौधरी

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|संग्रह=एकाकी दोनों / स्नेहमयी चौधरी
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बार-बार अपनी ही कविताओं को
 
पढ़ने की इच्छा करता हुआ मन
 
किसी दूसरे के बढ़े हुए हाथ की
 
तलाश में घूमता है।
 
अजब स्थिति है :
 
बदराया हुआ आसमान
 
न बरसता है, न खुलता।
 
सारा शहर
 
बंद खिड़कियों वाला
 
एक कमरा हो गया है।
आड़ी-तिरछी रेखाएँ
 
बनाता हुआ धुआँ
 
जब बादलों की एक और परत बन जाता है--
 
मैं अपने बूढ़े पिता को पत्र लिखने लगती हूँ,
 
जिसमें भाई,बहनों और सफ़ेद बालों वाली माँ
 
की कुशल-क्षेम के प्रति उत्सुकता है।
 
मेरे सामने :
 
पौधों को स्थानांतरित करने की
 
प्रक्रिया में माली
 
हर रंग, हर आकार के फूलों को
 
पास-पास रख चुका है।
 
जाने किस अभाव में
 
ओस-भीगी घास
 
जिस पर मैं बैठी हूँ
 
और गीली लगने लगी है।
 
हालाँकि
 
झर-झर कर
 
पीपल की सूखी पत्तियाँ
 
एकत्र हो चुकी हैं,
 
मेरे पीछे आ कर।
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