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|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
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{{KKCatKavita}}{{KKCatGhazal}}<poem>हँसी की बात क्या है ग़र मुझे हँसना नहीं आता।
ये क्या कम है किसी भी हाल में रोना नहीं आता।
उसी पँछी ने आख़िर कर लिया सर आसमाँ इक दिन,
जिसे लोग कहते थे इसे उड़ना नहीं आता।
</poem>