भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ <ref>कृतार्थ कर दे</ref> दे मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त <ref>सदगुण</ref> भी अता <ref>प्रदान करे</ref> करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो
मेरे बाज़ुओं में थकी-थकी, अभी महव-ए-ख़्वाब <ref>सपनों में खोई हुई</ref> है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बेचिराग़ ये घर न हो
वो फ़िराक़ <ref>विरह</ref> हो या विसाल <ref>मिलन</ref> हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
मेरे पास मेरे हबीब <ref>प्रिय</ref> आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कोई डर न हो
</poem>
{{KKMeaning}}