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सहसा मूर्ति चतुर्भुजी, छिपी गरुड़ की पाँख में
वामन एक खड़ा हुआ लिये कुशासन काँख में
 
(चर का प्रवेश)
चर-- 
सुरगुरु-सेव्य कमंडल बायें कर में , दहने  
घटज-दत्त मृगचर्म, पादुका नृग की पहने
उर उपवीत पुनीत, पीत पट चतुरानन का
कटि  में वसु मेखला, रोषमय भाव नयन का
छत्र देवपति का तना, मस्तक पर ढुलते चँवर
वामन एक खड़ा, प्रभो! दर्शन के हित द्वार पर
 
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