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"आँख से दूर न हो / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा <br><br>
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तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा
  
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डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा <br><br>
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मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा
  
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ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा <br><br>
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ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा
 
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ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"<br>
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ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा <br><br>
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20:52, 26 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा

तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा

किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दो
मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा

ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा

डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा