"सफ़ेद कबूतर / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>'''सफेद कबूतर ''' सन् उन्नीस सौ सैंतालिस महीना अगस्त जब मैं छूटा र…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem> | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=प्रदीप मिश्र | |
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
सन् उन्नीस सौ सैंतालिस | सन् उन्नीस सौ सैंतालिस | ||
महीना अगस्त | महीना अगस्त |
21:03, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
सन् उन्नीस सौ सैंतालिस
महीना अगस्त
जब मैं छूटा रक्तिम पंजों से
और आजादी की हुलास में उड़ता ही चला गया
उड़ान देखकर दंग था आसमान
वरूण देव ने दबा ली थी दांतों तले अंगुली
मेरा रंग सफेद झक
और आधी रात का वक्त
चारो तरफ काला घुप्प
ऐसे में मेरे पंख हवाओं में
गुलाबी ठण्ड भर रहे थे
मेरा आजाद तन
पूर्णीमा के चाँद से भी ज्यादा
दमक रहा था
एक कबूतर
अंधेरे के खिलाफ
पहली बार उड़ान भर रहा था
खुश थे सभी देवी-देवता
कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र
दे दिया खुशी से
इन्द्रधनुष ने दिए दो रंग उपहार में
हरे रंग को एक पंख पर
दूसरे पर पर केशरिया
पीठ के बीचो-बीच
घूमते हुए सुदर्शन चक्र को लिए
मैं आधी सदी से उड़ रहा हूँ
इन्तजार कर रहा हूँ
कब सुबह हो और उतरूँ
अपने देश की आजाद धरती {É®ú… ।